Wednesday, September 30, 2009

गर्भाशय संबंधी रोग (Uterus Diseases)

गर्भाशय संबंधी रोग (Uterus Diseases)

गर्भाशय का टलना(Prolapse of the Uterus)

लक्षण: पेट और कमर के निचले हिस्‍से में बैचेनी, ऐसा आभास होना कि कुछ नीचे आ रहा है, माहवारी में अधिक स्राव, कम मात्रा में योनि स्राव, बार-बार पेशाब आना, सम्‍भोग में कठिनाई।

कारण: भोजन ठूस-ठूस कर खाना, गैस, पुरानी कब्‍ज, तंग कपड़े पहनना। पेट की कमजोर आंतरिक मांसपेशियॉं, व्‍यायाम की कमी, अन्‍य दूसरे रोग, प्रसव(Delivery) के समय बरती गई असावधानियॉं।

गर्भाशय की सूजन ( Inflammation of the Uterus)

लक्षण: हल्‍का बुखार, सिरदर्द, भूख न लगना, कमर और पेट के निचले भाग में दर्द, योनि में खुजलाहट।

कारण: माहवारी के समय ठंड लग जाना, अधिक सहवास, गर्भाशय का टलना, औषधियों का सेवन, गलत आहार-विहार।

गर्भाशय संबंधी रोगों का उपचार:

चार-पांच दिन केवल रसाहार, फिर अपक्‍वाहार और फिर संतुलित आहार पर आयें।

नमक, मिर्च-मसाला, तली-भुनी, मिठाईयां इत्‍यादि से परहेज रखें।

पेट पर मिट्टी पट्टी, एनिमा, गर्म ठंडा कटिस्‍नान करें, टब में नमक डालकर पन्‍द्रहबीस मिनट तक बैठें।

प्रतिदिन दो-तीन बार एक-दो घंटा पांव को एक फुट ऊंचा उठाकर लेटें। पूर्ण विश्राम एवं शवासन करें।

वायु विकार

वायु विकार

लक्षण: बदहजमी से पेट में गैस बनने लगती है। जो बार-बार गुदा मार्ग से निकलती रहती है या रूक जाती है। यह शरीर में वात रोग पैदा करती है। जैसे पेट फुल जाना (अफारा), बेचैनी, बदन दर्द, दिल घबराना, काम में मन न लगना, भूख का मर जाना, स्‍नायुविक दुर्बलता, शारीरिक एवं मानसिक असंतुलन।

कारण: कब्‍ज, अपच, बेमेल भोजन, ठीक से चबाकर न खाना, पर्याप्‍त श्रम एवं विश्राम का अभाव, मलमूत्र का देर तक रोकना, भय, शोक, चिंता, तनाव, असंतुलित आहार विहार।

उपचार: एक दो दिन का उपवास रसाहार पर करें। गर्म पानी में नींबू का रस, अदरक का रस एवं शहद मिलाकर दिन में तीन चार बार लें। मट्ठा का प्रयोग करें। फिर कुछ दिन फलाहार पर रहकर जिसमें भरपूर मात्रा में फल, सब्जियां, अंकुरित इत्‍यादि हो उसके बाद सामान्‍य आहार पर आयें। चोकर समेत आटे की रोटी थोड़ा चने का आटा मिलाकर खायें। भोजन को ठीक से चबाकर खायें। अधिक गर्म या अधिक ठंडा भोजन न लें। साप्‍ताहिक उपवास अवश्‍य करें। केवल दो समय भोजन करने का नियम बनायें। चीनी, चाय, तली-भुनी चीजे, मैदा, इत्‍यादि का सेवन न करें। भोजन के उपरांत वज्रासन में बैंठें। रोज रात को भिगोए हुए दस दाने मुनक्‍का एवं दो अंजीर खायें। रोज रात को त्रिफला चूर्ण पानी के साथ लें। हरा धनिया खायें।

छोटी हरड को मुंह में रखकर चूसते रहें। भोजन के पश्‍चात आठ सांस पीठ के बल लेटकर, सोलह सांस दाहिनी करवट लेटकर और बत्‍तीस सांस बांयी करवट लेटकर लें।

पेट पर गर्म ठंडा सेक देकर एनिमा लें, कटिस्‍नान, पेट की लपेट या मिट्टी पट्टी, शंख प्रक्षालन, दांया स्‍वर चलाना।

सुप्‍तपवन मुक्‍तासन, पश्चिमोत्‍तानासन, धनुरासन, शलभासन, उत्‍तानपादासन, भुजंगासन, हलासन, मयूरासन, नौकासन करें।

पीठ के बल लेटकर साईकलिंग एवं उड्डियान बंध व कपाल भाति प्राणायाम करें।

Wednesday, September 23, 2009

पेट दर्द का घरेलू इलाज

गलत खानपान के कारण कभी-कभी बच्चों और बड़ों को पेट दर्द होने लगता है। पेट दर्द को दूर करने हेतु एक घरेलू इलाज इस प्रकार है, जो दर्द दूर करने के साथ ही पेट की क्रियाओं को भी ठीक करता है-

नुस्खा : गुड़ दस ग्राम लेकर इसमें आधा चम्मच खाने का गला हुआ चूना मिलाकर गोली बना लें। इसे एक गिलास गुनगुने पानी के साथ निगलकर ऊपर से पानी पी जाएं और बिस्तर पर लेट जाएं। थोड़ी ही देर में पेट दर्द ठीक हो जाएगा।

यूं तो पेट दुखने के अलग-अलग कई कारण हो सकते हैं, लेकिन आमतौर पर पेट दर्द का एक मुख्य कारण अपच, मल सूखना, गैस बनना यानी वात प्रकोप होना और लगातार कब्ज बना रहना भी है। पेट दर्द होने पर निम्नलिखित नुस्खा प्रयोग करना चाहिए-

चिकित्सा : करंज के बीज की मिंगी 50 ग्राम, कच्ची हींग 10 ग्राम, शुद्ध हिंगुल 3 ग्राम, शंख भस्म 10 ग्राम और गुड़ 50 ग्राम। पहले करंज की मिंगी को कूट-पीस कर बारीक चूर्ण कर लें, फिर हींग व शंख भस्म मिलाकर शुद्ध हिंगुल पीसकर मिलाकर सबको एक जान कर लें। गुड़ की थोड़ी सी चाशनी बनाकर इस चाशनी में मिश्रित चूर्ण डालकर 1-1 रत्ती की गोलियां बना लें और छाया में सुखा लें। ये 2-2 गोली सुबह-शाम पानी के साथ लेने से पेट दर्द दूर होता है, आध्मान आनाह, सिर दर्द आदि व्याधियों में भी लाभ होता है। यह नुस्खा बनाने में आसान है, फिर भी यदि कोई इसे घर में न बना सके तो बाजार से खरीद सकता है। यह नुस्खा 'उदर शूल हर वटी' के नाम से बना बनाया
बाजार में मिलता है।
पेट में कई बार तेज जलन होती है, कभी इतनी तेज होती है कि लगता है जैसे पेट में आग लग गई हो या भट्टी जल रही हो। यह जलन खान-पान पर भी निर्भर रहती है।

कभी मिर्च न खाने वाले या कम खाने वाले को ज्यादा मिर्च का भोजन खाना पड़ जाए, तो भी यह परेशानी आ सकती है। कभी शरीर में गर्मी बढ़ जाने से भी जलन होती है, पेट हमारे शरीर का केन्द्र होता है, इसमे किसी प्रकार की खराबी नहीं होना चाहिए।

चिकित्सा : पुष्कर मूल, एरंड की जड़, जौ और धमासा चारों को मोटा-मोटा कूटकर शीशी में भर लें। एक गिलास पानी में दो चम्मच चूर्ण डालकर उबालें। जब पानी आधा कप बचे तब उतारकर, आधा सुबह व आधा शाम को पी लिया करें। पेट की जलन दूर हो जाएगी। यह प्रयोग 8 दिन तक करके बंद कर दें।

इस प्रयोग के साथ उचित पथ्य आहार का सेवन और अपथ्य का त्याग रखना आवश्यक है। पथ्य आहार में प्रायः कच्चा दूध और पानी एक-एक कप मिलकर, इसमें एक चम्मच पिसी मिश्री या चीनी डालकर फेंट लगाएं और खाली पेट चाय या दूध की जगह पिएं। चाय या दूध न पिएं। इस तरह दिन में दो या तीन बार यह लस्सी पिएं। भोजन के अन्त में आगरे का पेठा या पका केला खाएं। सुबह-शाम एक-एक चम्मच प्रवालयुक्त गुलकंद खाएं, दोपहर में आंवले का मुरब्बा (एक आंवला) खूब चबा-चबाकर खाएं। तले हुए और उष्ण प्रकृति के पदार्थ न खाएं।

फटी एड़ियां

शरीर में उष्णता या खुश्की बढ़ जाने, नंगे पैर चलने-फिरने, खून की कमी, तेज ठंड के प्रभाव से तथा धूल-मिट्टी से पैर की एड़ियां फट जाती हैं।

यदि इनकी देखभाल न की जाए तो ये ज्यादा फट जाती हैं और इनसे खून आने लगता है, ये बहुत दर्द करती हैं। एक कहावत शायद इसलिए प्रसिद्ध है- जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई।

घरेलू इलाज

* अमचूर का तेल 50 ग्राम, मोम 20 ग्राम, सत्यानाशी के बीजों का पावडर 10 ग्राम और शुद्ध घी 25 ग्राम। सबको मिलाकर एक जान कर लें और शीशी में भर लें। सोते समय पैरों को धोकर साफ कर लें और पोंछकर यह दवा बिवाई में भर दें और ऊपर से मोजे पहनकर सो जाएं। कुछ दिनों में बिवाई दूर हो जाएगी, तलवों की त्वचा साफ, चिकनी व साफ हो जाएगी।

* त्रिफला चूर्ण को खाने के तेल में तलकर मल्हम जैसा गाढ़ा कर लें। इसे सोते समय बिवाइयों में लगाने से थोड़े ही दिनों में बिवाइयां दूर हो जाती हैं।

चावल को पीसकर नारियल में छेद करके भर दें और छेद बन्द करके रख दें। 10-15 दिन में चावल सड़ जाएगा, तब निकालकर चावल को पीसकर बिवाइयों में रोज रात को भर दिया करें। इस प्रयोग से भी बिवाइयां ठीक हो जाती हैं।

* गुड़, गुग्गल, राल, सेंधा नमक, शहद, सरसों, मुलहटी व घी सब 10-10 ग्राम लें। घी व शहद को छोड़ सब द्रव्यों को कूटकर महीन चूर्ण कर लें, घी व शहद मिलाकर मल्हम बना लें। इस मल्हम को रोज रात को बिवाइयों पर लगाने से ये कुछ ही दिन में ठीक हो जाती हैं।

* रात को सोते समय चित्त लेट जाएं, हाथ की अंगुली लगभग डेढ़ इंच सरसों के तेल में भिगोकर नाभि में लगाकर 2-3 मिनट तक रगड़ते हुए मालिश करें और तेल को सुखा दें। जब तक तेल नाभि में जज्ब न हो जाए, रगड़ते रहें। यह प्रयोग सिर्फ एक सप्ताह करने पर बिवाइयां ठीक हो जाती हैं और एड़ियां साफ, चिकनी व मुलायम हो जाती हैं। एड़ी पर कुछ भी लगाने की जरूरत नहीं।

कई रोगों की दवा 'प्याज'

प्याज को लगभग हर सब्जी में डाला जाता है। इसे सलाद के रूप में कच्चा भी खूब खाया जाता है। प्याज हरा और सूखा दोनों प्रकार का प्रयोग में लाया जाता है। यकीनन प्याज के प्रयोग से भोजन का स्वाद बढ़ जाता है परंतु यह केवल भोजन को स्वादिष्ट ही नहीं बनाता अपितु इसमें अनेक ऐसे तत्व होते है, जिनसे शरीर को पोषण मिलता है साथ ही यह अनेक रोगों के लिए औषधि का काम भी करता है। यह भोजन पचाने में सहायता करता है तथा शरीर का बल बढ़ाता है। प्याज अच्छा रक्त विकार नाशक भी है।

* रक्त विकास को दूर करने के लिए 50 ग्राम प्याज के रस में 10 ग्राम मिश्री तथा 1 ग्राम भूना हुआ सफेद जीरा मिला लें।

* कब्ज के इलाज के लिए भोजन के साथ प्रतिदिन एक कच्चा प्याज जरूर खाएँ। यदि अजीर्ण की शिकायत हो तो प्याज के छोटे-छोटे टुकड़े काटकर उसमें एक नीबू निचोड़ लें या सिरका डाल लें तथा भोजन के साथ इसका सेवन करें।

* बच्चों को बदहजमी होने पर उन्हें प्याज के रस की तीन-चार बूँदें चटाने से लाभ होता है। अतिसार के पतले दस्तों के इलाज के लिए एक प्याज पीसकर रोगी की नाभि पर लेप करें या इसे किसी कपड़े पर फैलाकर नाभि पर बाँध दें।

* हैजे में उल्टी-दस्त हो रहे हों तो घंटे-घंटे बाद रोगी को प्याज के रस में जरा सा नमक डालकर पिलाने से आराम मिलता है। प्रत्येक 15-15 मिनट बाद 10 बूँद प्याज का रस या 10-10 मिनट बाद प्याज और पुदीने के रस का एक-एक चम्मच पिलाने से भी हैजे से राहत मिलती है।

* हैजा हो गया हो तो सावधानी के तौर पर एक प्याला सोडा पानी में एक प्याला प्याज का रस, एक नीबू का रस, जरा सा नमक, जरा-सी काली मिर्च और थोड़ा सा अदरक का रस मिलाकर पी लें, इससे हाजमा दुरुस्त हो जाएगा तथा हैजे का आक्रमण नहीं होगा।

* बारह ग्राम प्याज के टुकड़े एक किलोग्राम पानी में डालकर काढ़ा बनाकर दिन में तीन बार नियमित रूप से पिलाने से पेशाब संबंधी कष्ट दूर हो जाते हैं। इससे पेशाब खुलकर तथा बिना कष्ट आने लगता है।

* खाँसी, साँस, गले तथा फेफड़े के रोगों के लिए व टांसिल के लिए प्याज को कुचलकर नसवार लेना फायदेमंद होता है। जुकाम में भी प्याज की एक गाँठ का सेवन लाभदायक होता है।

* पीलिया के निदान में भी प्याज सहायक होता है। इसके लिए आँवले के आकार के आधा किलो प्याजों को बीच में से चीर कर सिरके में डाल दीजिए। जरा सा नमक और कालीमिर्च भी डाल दीजिए। प्रतिदिन सुबह-शाम एक प्याज खाने से पीलिया दूर होगा।

* प्याज को बारीक पीसकर पैरों के तलुओं में लेप लगाने से लू के कारण होने वाले सिरदर्द में राहत मिलती है।
* कान बहता हो, उसमें दर्द या सूजन हो तो प्याज तथा अलसी के रस को पकाकर दो-दो बूँदें कई बार कान में डालने से आराम मिलता है। यदि कोई अंग आग से जल गया हो तो तुरंत प्याज कूटकर प्रभावित स्थान पर लगाना चाहिए।

* विषैले कीड़े, बर्र, कनखजूरा और बिच्छू काटने पर प्याज को कुचलकर उसका लेप लगाना चाहिए। बिल्ली या कुत्ते के काटने पर रोगी को डॉक्टर के पास जाने तक प्याज और पुदीने के रस को तांबे के बर्तन पर डालकर प्रभावित स्थान पर लगाइए इससे विष उतर जाएगा।

* हिस्टीरिया या मानसिक आघात से यदि रोगी बेहोश हो गया हो तो उसे होश में लाने के लिए प्याज कूटकर सुँघाएँ इससे रोगी तुरंत होश में आ जाता है।

* मूत्राशय की पथरी को दूर करने के लिए रोगी को प्याज के रस में शकर डालकर शर्बत बनाकर पिलाएँ। ऐसा शर्बत नियमित रूप से पिलाने से पथरी कट-कटकर निकल जाती है। इस दौरान रोगी को टमाटर, साबुत मूँग तथा चावल न खाने दें। रोगी को भोजन के साथ एक खीरा खाने को दें। साथ ही रोगी को खूब पानी पीने के लिए कहें।

* किसी नशे में धुत व्यक्ति को यदि एक कप प्याज का रस पिला दिया जाए तो नशे का प्रभाव काफी कम हो जाता है।

मुँहासों का घरेलू उपचार

* मुँहासे खूबसूरत चेहरे पर लगे धब्बे हैं, अतः इनसे निजात पाना जरूरी है। इसके लिए सुविधानुसार कोई भी तरीका चुना जा सकता है-

* नीम के साबुन से प्रतिदिन स्नान करें अथवा पानी में दो-चार बूँद डेटॉल डालकर स्नान करें।

* चंदन में गुलाब जल डालकर उसका लेप लगाने से भी लाभ होता है। मुँहासों पर आधे घंटे तक यह लगा रहने दें। फिर साफ ठंडे पानी से धो लें। प्रतिदिन इस क्रिया को दोहराएँ। पंद्रह दिनों में काफी फर्क पड़ जाएगा।

* थोड़ा सा चंदन और एक-दो पत्ती केसर पानी के साथ घिसकर प्रतिदिन आधे घंटे तक मुँहासों पर लगाएँ। तत्पश्चात चेहरा साफ-ठंडे पानी से धो लें।

* पुदीने को पीसकर मुँहासों पर लगाने से भी लाभ होता है। ऐसा प्रतिदिन आधे घंटे तक 15 दिनों तक करना चाहिए।

* तुलसी के पत्तों के रस में टमाटरों का रस मिलाकर लगाने से मुँहासों में लाभ होता है।

* चेहरे पर नींबू रगड़ने से भी मुँहासे दूर होते हैं।

* जामुन की गुठली को पानी में घिसकर चेहरे पर लगाने से मुँहासे दूर होते हैं।

* दही में कुछ बूँदें शहद की मिलाकर उसे चेहरे पर लेप करना चाहिए। इससे कुछ ही दिनों में मुँहासे दूर हो जाते हैं।

* तुलसी व पुदीने की पत्तियों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें तथा थोड़ा-सा नींबू का रस मिलाकर चेहरे पर लगाने से भी मुँहासों से निजात मिलती है।

* नीम के पेड़ की छाल को घिसकर मुँहासों पर लगाने से भी मुँहासे घटते हैं।

* जायफल में गाय का दूध मिलाकर मुँहासों पर लेप करना चाहिए।

* हल्दी, बेसन का उबटन बनाकर चेहरे पर लगाने से भी मुँहासे दूर होते हैं।

* नीम की पत्तियों के चूर्ण में मुलतानी मिट्टी और गुलाबजल मिलाकर पेस्ट बना लें व इसे चेहरे पर लगाएँ।

* नीम की जड़ को पीसकर मुँहासों पर लगाने से भी वे ठीक हो जाते हैं।

* काली मिट्टी को घिसकर मुँहासों पर लगाने से भी वे नष्ट हो जाते हैं।

* दिन में कम से कम 5-6 बार चेहरा ग्लिसरीनयुक्त साबुन से धोएँ।

* किसी भी तरह की सौंदर्य प्रसाधन सामग्री का इस्तेमाल मत कीजिए।

* गरिष्ठ भोजन की बजाए सादा, सात्विक भोजन लें। अधिक मात्रा में तेल-घी, मिर्च-मसाले, अचार आदि का सेवन न करें। कब्जियत से बचें। दिन में आठ-दस गिलास पानी अवश्य पीएँ।

* सिर में यदि रूसी हो तो उसका उपाय कीजिए।

* बालों में तेल या अन्य कोई चिकनाईयुक्त क्रीम न लगाएँ।

* चाय कॉफी, मांस, मछली, शराब आदि का सेवन न करें।

* विटामिन-सी का सेवन मुँहासों के लिए बहुत लाभदायक है। विटामिन के रूप में नींबू का सेवन करें।

* व्यायाम करने से रक्त संचार बढ़ता है और तैलीय ग्रंथियों में रुकावट नहीं आती। इससे मुँहासे कम हो जाते हैं।
* ताँबे के बर्तन में पीने का पानी रखना।

* सुबह उठते ही एक गिलास पानी पीना।

* सुबह का खाना दस से बारह बजे के बीच खाना।

* खाना खाते समय खुश रहना।

* भोजन के साथ सलाद खाना।

* दोनों समय के भोजन के बीच सात घंटे का अंतर।

* खाने के साथ थोड़ा पानी पीना, ज्यादा नहीं।

* खाना खाने के बाद कुल्ला करना।

* खाना खाने के बाद पाँच सौ कदम चलना।

* रात का खाना छः से नौ बजे के बीच खाना।

* रात को दस बजे के बाद कुछ नहीं खाना।

* रात को सोने के पहले दूध पीना।

* खाना खाने के बाद बाईं करवट आराम करना।

* रात का खाना सोने से दो घंटे पूर्व खाना।

* रात को ब्रश करके सोना।

* खाने का समापन मिठास (मिठाई) के साथ करना।

जरूरी नुस्खे

* शाम को भोजन के पश्चात देर रात तक जागना या खुले बदन घूमना हानिकारक है किंतु सुबह की धूप जरूर लें।

* इस ऋतु में आलस्य खूब आता है और बिस्तर में दबे रहने का इरादा होता है, लेकिन आलस्य करना ठीक नहीं। इन बातों पर अमल करके आप तंदुरुस्त और बलवान बन सकते हैं।

* कमजोरी : जो लोग दुबलेपन का शिकार हैं उन्हें भोजन के साथ दो या तीन चम्मच शहद खाना चाहिए तथा रात को सोते समय ठंडे फीके दूध में शहद घोलकर पीना चाहिए।

* थकावट : एक गिलास ठंडे पानी में 1-2 चम्मच शहद घोलकर पीने से शरीर में चुस्ती-फुर्ती आती है।

* अपच : अपच होने पर पालक की सब्जी खाएं व टमाटर का रस पीएं।

* पैर के तले में जलन होना : पैर के तलवे में जलन होने पर बड़े-बड़े लौकी के टुकड़े काटकर उस पर घिसें।

* कब्ज : कब्ज न हो इसलिए दोनों समय खाना खाने के बाद थोड़ा-सा गुड़ खा लें।

* बवासीर : नीबू काटकर, उस पर खाने का कत्था लेपकर रात को छत पर रख दें। सुबह-सुबह इसे चूसें, बवासीर में लाभ होगा।

* खूनी बवासीर : अमरूद काटकर नौसादर का लेप करें, रातभर खुले स्थान पर रखें, सुबह-सुबह खा लें। खूनी बवासीर में लाभ होगा।
* गैस की तकलीफ से तुरंत राहत पाने के लिए लहसुन की 2 कली छीलकर 2 चम्मच शुद्ध घी के साथ चबाकर खाएँ। फौरन आराम होगा।

* प्याज के रस में नींबू का रस मिलाकर पीने से उल्टियाँ आना बंद हो जाती हैं।

* सूखे तेजपान के पत्तों को बारीक पीसकर हर तीसरे दिन एक बार मंजन करने से दाँत चमकने लगते हैं।

* हिचकी चलती हो तो 1-2 चम्मच ताजा शुद्ध घी, गरम कर सेवन करें।

* ताजा हरा धनिया मसलकर सूँघने से छींके आना बंद हो जाती हैं।

* प्याज का रस लगाने से मस्सों के छोटे-छोटे टुकड़े होकर जड़ से गिर जाते हैं।

* यदि नींद न आने की शिकायत है, तो रात्रि में सोते समय तलवों पर सरसों का तेल लगाएँ।

* एक कप गुलाब जल में आधा नीबू निचोड़ लें, इससे सुबह-शाम कुल्ले करने पर मुँह की बदबू दूर होकर मसूड़े व दाँत मजबूत होते हैं।

* भोजन के साथ 2 केले प्रतिदिन सेवन करने से भूख में वृद्धि होती है।

* आँवला भूनकर खाने से खाँसी में फौरन राहत मिलती है।

* 1 चम्मच शुद्ध घी में हींग मिलाकर पीने से पेटदर्द में राहत मिलती है।

* टमाटर को पीसकर चेहरे पर इसका लेप लगाने से त्वचा की कांति और चमक दो गुना बढ़ जाती है। मुँहासे, चेहरे की झाइयाँ और दाग-धब्बे दूर करने में मदद मिलती है।

* पसीना अधिक आता हो तो पानी में फिटकरी डालकर स्नान करें।

* उबलते पानी में नींबू निचोड़कर पानी पीने से ज्वर का तापमान गिर जाता है।

* सोने से पहले सरसों का तेल नाभि पर लगाने से होंठ नहीं फटते।

* 250 ग्राम छाछ में 10 ग्राम गुड़ डालकर सिर धोने से अथवा नींबू का रस लगाकर सिर धोने से रूसी दूर होती है।

पसली के दर्द में

* चंद्रामृत रस 4 रत्ती, श्रृंग भस्म 1 1/2 रत्ती, नौसादर 1 1/2 रत्ती, मल्लसिंदूर 1 रत्ती लेकर सबको एकसार करके मिला लें। फिर इसकी चार बराबर-बराबर पुड़ियाँ बनाएँ।1-1 पुड़िया 4-4 घंटे पर दें। यह पसली के दर्द (पार्श्वशूल) का सफल अनुभूत नुस्खा है। निमोनिया की अवस्था में यह योग मिश्रण कफ को द्रव करके निकालता है। इससे हृदय की वेदना कम हो जाती है।

* उत्तम साबुन, कपूर और दालचीनी का तेल लेकर मलहम बनाएँ। मलहम बनाने की विधि निम्न प्रकार है-

पहले साबुन लेकर चाकू से बारीक-बारीक छिलके उतारें। इस प्रकार 50 ग्राम साबुन के छिलके उतारें और उन्हें खरल में डालकर आवश्यकतानुसार तारीपन का तेल डालकर घुटाई करें। जैसे-जैसे द्रवत्व सूखे, वैसे-वैसे और तारपीन का तेल डालते हुए घुटाई करते रहें।

घोंटते-घोंटते साबुन का अंश तारपीन के तेल में मिलकर मलहम जैसा बन जाना चाहिए अर्थात साबुन का विलय तेल में पूर्ण रूप से हो जाना चाहिए। इसके बाद 10 ग्राम कपूर डालकर पुनः घुटाई करें और फिर शीशी में भरकर रख लें।

* निमोनिया में होने वाले पसली के दर्द में इसे थोड़ा सा लगाकर अच्छी तरह सेंक करें। इससे कैसा भी दर्द हो, तुरंत बंद हो जाता है। इसके अतिरिक्त शरीर के किसी भी अंग में दर्द हो, इसे लगाकर मालिश करने से शीघ्र आराम मिलता है। साधारण दर्द हो तो केवल लगाकर मालिश कर धूप में बैठने से ही आराम मिलता है।

* गोदंती 10 ग्राम, मेदा लकड़ी 10 ग्राम, और गाय का घी 30 ग्राम लें। पहले दो द्रव्यों को बारीक पीस लें। फिर इन्हें घी में मिलाकर थोड़ा गरम करके पसली पर लगाएँ। इससे पसली के दर्द में राहत मिलती है।

सिंगरफ 3 ग्राम, जायफल, लौंग, जावित्री, 6-6 ग्राम, मोम 12 ग्राम और देशी घी 60 ग्राम लें।

पहले सिंगरफ को खूब घोंटें, फिर लौंग, जावित्री, जायफल को महीन पीसकर रख लें। तत्पश्चात्‌ घी गर्म करके उसमें मोम मिला दें। जब दोनों घुल जाएँ तब उतारकर उक्त पिसी हुई औषधियों को डालकर खूब मिला दें। ठंडा होने पर यह वैसलीन के समान मलहम बन जाता है।

बच्चों अथवा बड़ों को तीव्र पसली के दर्द में हल्का गर्म करके लगाने से तुरंत दर्द बंद हो जाता है। यह शत-प्रतिशत सफल अनुभूत योग है।

नमक के गरारे

मौसम बदलने पर गले में खराश या आवाज बैठ जाने की शिकायत सुनने में आती है।

गला खराब होने का मतलब अक्सर गले में दर्द होना या खुजली जैसा होना, गले में कफ जम जाना और गले की आवाज बदल जाना माना जाता है।

धूल या पराग कण इत्यादि के प्रति अति संवेदनशील होने से शरीर प्रतिक्रिया करता है, यही गला खराब होने के रूप में उभरता है। इन तमाम परिस्थितियों का गले पर असर पड़ता है।

हमारी श्वास नली व ग्रास नली के अंदर एक लसलसा पदार्थ हमेशा स्रावित होता रहता है। यह नलियों में से गुजरने वाले पदार्थों के आवागमन को सुगम बना देता है।

साथ ही उसमें कुछ ऐसी प्रतिरक्षात्मक कोशिकाएँ भी होती हैं, जो गले में से गुजरने वाले पदार्थों को भाँपकर नुकसानदेह पदार्थों को नष्ट करने में जुट जाती हैं।

इस कारण यह पदार्थ धीरे-धीरे गाढ़ा होता जाता है। इसमें मृत कोशिकाएँ, रोगाणु तथा नुकसानदेह पदार्थ काफी मात्रा में भर जाते हैं। गाढ़ी अवस्था में हम इसे कफ कहते हैं। यह अगर गले में जम जाए तो गला खराब हो जाता है।

प्रतिरक्षात्मक कोशिकाओं को नुकसानदेह बाहरी पदार्थों से लड़ना पड़ता है तो इनमें सूजन आ जाती है और गला खराब हो जाता है। यानी गले में दर्द या खुजली चलने लगती है।

गला खराब होने पर नमक के गरारे से काफी मदद मिलती है। नमक का सांद्र घोल गले की परत पर चढ़ाई किए हुए कई रोगाणुओं के लिए काफी खतरनाक है। इसके प्रभाव से रोगाणु मर भी जाते हैं।

कफ जमा हो तो यह गाढ़े कफ को पतला कर काफी मात्रा में ठोस पदार्थों को गले से बाहर निकालने में मदद करता है, इसलिए नमक के घोल से गरारे करने को कहा जाता है।

* सहन कर सकने योग्य एक गिलास गरम पानी में एक चम्मच नमक डालकर इस पानी से गरारे करना चाहिए।

* फिटकरी का एक बारीक सा टुकड़ा भी इस पानी में डालकर गरारे करने पर आराम मिलता है।

* नमक के साथ या तो खाने का सोडा दो चुटकी मिलाकर गरारे करने से भी आराम मिलता है।

या तो फिटकरी डालें या खाने का सोडा मिलाएँ यानी नमक के साथ कोई एक चीज को प्रयोग करें।

मोच आ जाना

काम करते समय कई बार हमें यह मालूम नहीं हो पाता कि हाथ-पाँव में मोच लग गई है, कुछ समय बाद उस जगह दुःखने पर यह पता लगता है।

ज्यादा परेशानी होने पर तुरंत डॉक्टर को बताएँ और उपचार लें। यदि मोच छोटी है तो आप घरेलू उपचार कुछ इस तरह करें।

* मोच खाए या टूटे अंग की मालिश कभी भी न करें। इससे कोई लाभ नहीं होता, बल्कि हानि पहुँच सकती है।

* मोच खाए जोड़ को ठीक करने के लिए इलास्टिक की पट्टियों से बाँधे।

* मोच खाए टखने पर एड़ी से शुरू कर पट्टी को ऊपर की ओर बाँधें, ध्यान रहे कि पट्टी बहुत सख्त न हो और हर दो घंटे में खोलते रहें। यदि दर्द और सूजन 48 घंटे में कम न हो तो चिकित्सा सहायता लें।

* पीड़ा और सूजन में कमी लाने के लिए मोच खाए अंग पर हर घंटे बाद बर्फ या ठंडे पानी की भीगी हुई पट्टियां रखें। इससे पीड़ा और सूजन में कमी आती है।

दिल की धड़कन तेज होना

थोड़ा सा भी परिश्रम करने पर, तेज चलने पर, उठने-बैठने पर या इसी प्रकार के अन्य कार्य करने पर दिल की धड़कन असामान्य हो जाती है।

दिल की धड़कन असामान्य होना दिल की कमजोरी का प्रतीक होता है। इससे रक्त संचार भी बढ़ जाता है और घबराहट सी लगने लगती है। इसका घर पर सामान्य इलाज इस प्रकार किया जा सकता है-

* 10 ग्राम अनार के पत्ते लेकर 10 ग्राम पानी में डालकर हल्की आँच पर उबालें। यह काढ़ा सुबह-शाम प्रतिदिन पीने से दिल मजबूत बनता है और दिल की धड़कन सामान्य होती है।

* गाजर के 200 ग्राम ताजे रस में 100 ग्राम पालक का रस मिलाकर सुबह-सुबह प्रतिदिन पीने से दिल की धड़कन काबू में रहती है, दिल मजबूत रहता है तथा दिल से संबंधित सभी विकार दूर होते हैं।

* हृदय रोगी को खूब मथकर मक्खन निकालकर बनाई हुई छाछ एक गिलास प्रतिदिन पिलाई जाए तो हृदय की रक्तवाहिनियों में जमा चर्बी कम हो जाती है तथा दिल की धड़कन व घबराहट दूर होती है।

* आलूबुखारा व अनार खाने से भी दिल की बढ़ी हुई धड़कन काबू में होती है।

अन्य उपचार

लाल चंदन, सफेद चंदन, कपूर, मुलहठी, नीम के पत्ते, मेहंदी के पत्ते, मजीठ, गेरू, हिरमिची, बबूल के फूल और मूँगा भस्म सभी समान मात्रा में लें।

विधि : मूँगा भस्म को छोड़कर अन्य सभी औषधियों का कपड़छान चूर्ण बना लें। फिर चूर्ण तथा मूँगा भस्म को मिलाकर एकसार कर लें व एक शीशी में भर लें।

सेवन : बड़ों को चार रत्ती व बच्चों को आधा रत्ती से एक रत्ती तक दिन में दो बार केवड़ा अर्क, गुलाब अर्क या गाजवान अर्क के साथ दें।

नाभी टलना या गोला उठना

नाभि टलने को धरण गिरना या नाभि खिसकना कहते हैं। इस स्थिति में पेट में दर्द होता है, दस्त लग जाता है और किसी दवा से आराम नहीं होता। ऐसे में घर में ही करने वाला उपाय इस प्रकार है-

उपाय : सौंफ 10 ग्राम और गुड़ 50 ग्राम पीसकर मिला लें और सुबह खाली पेट अच्छी तरह चबा-चबाकर खा लें। यदि एक बार खाने पर नाभि ठीक न हो तो दूसरे दिन या तीसरे दिन भी खा लें। इस उपाय से नाभि यकीनन जगह पर आ जाएगी।

परहेज : भारी वजन उठाना या झटके के साथ कोई चीज उठाना सख्त मना है।

चना : हॉर्स पॉवर का प्रतीक

अश्व यानी घोड़ा, शक्ति का प्रतीक होता है, तभी इंजन या मोटर की शक्ति को, 'हॉर्स पॉवर' कहा जाता है यानी अश्व शक्ति से मापा जाता है और घोड़ा घास के अलावा चना ही खाता है। दिनभर मेहनत करता है, तांगा खींचता है पर थकता नहीं। इससे यह भी साबित होता है कि चने में कितनी शक्ति होती है।

ताकतवर तो हाथी भी होता है पर किसी इंजन की शक्ति को एलीफेण्ट पॉवर नहीं कहा जाता, क्योंकि हाथी में बल तो बहुत होता है पर साथ ही आलस्य और ढीला-ढालापन भी होता है। हाथी घोड़े की तरह फुर्तीला और सुडौल शरीर वाला नहीं होता और उसका बल आम तौर पर मनुष्य के काम नहीं आता जैसे कि घोड़े का बल काम आता है।

चने का नाश्ता : नाश्ते के लिए एक मुठ्ठी काले देशी चने पानी में डालकर रख दें। सुबह इन्हें कच्चे या उबालकर या तवे पर थोड़ा भुनकर मसाला मिलाकर, खूब चबा-चबाकर खाएं। चने के साथ किशमिश खा सकते हैं, कोई मौसमी फल खा सकते हैं। केला खाएं तो केले को पानी से धोकर छिलकासहित गोलाकार टुकड़े काट लें और छिलका सहित चबा-चबाकर खाएं। नाश्ते में अन्य कोई चीज न लें।

भोजन में चना : रोटी के आटे में चोकर मिला हुआ हो और सब्जी या दाल में चने की चुनी यानी चने का छिलका मिला हुआ हो तो यह आहार बहुत सुपाच्य और पौष्टिक हो जाता है। चोकर और चने में सब प्रकार के पोषक तत्व होते हैं। चना गैस नहीं करता, शरीर में विषाक्त वायु हो तो अपान वायु के रूप में बाहर निकाल देता है। इससे पेट साफ और हलका रहेगा, पाचन शक्ति प्रबल बनी रहेगी, खाया-पिया अंग लगेगा, जिससे शरीर चुस्त-दुरुस्त और शक्तिशाली बना रहेगा। मोटापा, कमजोरी, गैस, मधुमेह, हृदय रोग, बवासीर, भगन्दर आदि रोग नहीं होंगे।

* चने के आटे का उबटन शरीर पर लगाकर स्नान करने से खुजली रोग नष्ट होता है और त्वचा उजली होती है। यदि पूरा परिवार चने का नियम पूर्वक सेवन करे तो घोड़े की तरह शक्तिशाली, फुर्तीला, सुन्दर और परिश्रमी बना रह सकता है।

गेहूं चना जौ : गेहूं, चना और जौ तीनों समान वजन में जैसे तीनों 2-2 किलो लेकर मिला लें और मोटा पिसवा कर, छाने बिना, छिलका चोकरसहित आटे की रोटी खाना शुरू कर दें। इसे बेजड़ या मिक्सी रोटी कहते हैं।

चने को गरीब का भोजन भी कहा जाता है, लेकिन इसकी ताकत को हम अनदेखा कर देते हैं। चना सस्ता भी है और सरल सुलभ भी, इसलिए हमें पथ्य यानी सेवन करने योग्य आहार के रूप में चने का सेवन करके स्वास्थ्य लाभ अवश्य प्राप्त करना चाहिए।

छुहारा (खजूर) : प्रमुख मेवों में एक

हम भोजन में यूं को कई पदार्थ खाते हैं, लेकिन कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं, जिन्हें मौसम विशेष के अलावा वर्षभर प्रयोग किया जा सकता है। ऐसे ही पदार्थों की जानकारी इस कॉलम के माध्यम से हम देना चाहते हैं। इस बार खारक के संबंध में जानिए।

छुहारे को खारक भी कहते हैं। यह पिण्ड खजूर का सूखा हुआ रूप होता है, जैसे अंगूर का सूखा हुआ रूप किशमिश और मुनक्का होता है। छुहारे का प्रयोग मेवा के रूप में किया जाता है। इसके मुख्य भेद दो हैं- 1. खजूर और 2. पिण्ड खजूर।

गुण : यह शीतल, रस तथा पाक में मधुर, स्निग्ध, रुचिकारक, हृदय को प्रिय, भारी तृप्तिदायक, ग्राही, वीर्यवर्द्धक, बलदायक और क्षत, क्षय, रक्तपित्त, कोठे की वायु, उलटी, कफ, बुखार, अतिसार, भूख, प्यास, खांसी, श्वास, दम, मूर्च्छा, वात और पित्त और मद्य सेवन से हुए रोगों को नष्ट करने वाला होता है। यह शीतवीर्य होता है, पर सूखने के बाद छुहारा गर्म प्रकृति का हो जाता है।

परिचय : यह 30 से 50 फुट ऊंचे वृक्ष का फल होता है। खजूर, पिण्ड खजूर और गोस्तन खजूर (छुहारा) ये तीन भेद भाव प्रकाश में बताए गए हैं। खजूर के पेड़ भारत में सर्वत्र पाए जाते हैं। सिन्ध और पंजाब में इसकी खेती विशेष रूप से की जाती है। पिण्ड खजूर उत्तरी अफ्रीका, मिस्र, सीरिया और अरब देशों में पैदा होता है। इसके वृक्ष से रस निकालकर नीरा बनाई जाती है।

रासायनिक संघटन : इसके फल में प्रोटीन 1.2, वसा 0.4, कार्बोहाइड्रेट 33.8, सूत्र 3.7, खनिज द्रव्य 1.7, कैल्शियम 0.022 तथा फास्फोरस 0.38 प्रतिशत होता है। इस वृक्ष के रस से बनाई गई नीरा में विटामिन बी और सी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। कुछ समय तक रखने पर नीरा मद्य में परिणत हो जाती है। पके पिण्ड खजूर में अपेक्षाकृत अधिक पोषक तत्व होते हैं और शर्करा 85 प्रतिशत तक पाई जाती है।

उपयोग : खजूर के पेड़ से रस निकालकर 'नीरा' बनाई जाती है, जो तुरन्त पी ली जाए तो बहुत पौष्टिक और बलवर्द्धक होती है और कुछ समय तक रखी जाए तो शराब बन जाती है। इसके रस से गुड़ भी बनाया जाता है। इसका उपयोग वात और पित्त का शमन करने के लिए किया जाता है।
यह पौष्टिक और मूत्रल है, हृदय और स्नायविक संस्थान को बल देने वाला तथा शुक्र दौर्बल्य दूर करने वाला होने से इन व्याधियों को नष्ट करने के लिए उपयोगी है। कुछ घरेलू इलाज में उपयोगी प्रयोग इस प्रकार हैं-

दुर्बलता : 4 छुहारे एक गिलास दूध में उबाल कर ठण्डा कर लें। प्रातः काल या रात को सोते समय, गुठली अलग कर दें और छुहारें को खूब चबा-चबाकर खाएं और दूध पी जाएं। लगातार 3-4 माह सेवन करने से शरीर का दुबलापन दूर होता है, चेहरा भर जाता है, सुन्दरता बढ़ती है, बाल लम्बे व घने होते हैं और बलवीर्य की वृद्धि होती है। यह प्रयोग नवयुवा, प्रौढ़ और वृद्ध आयु के स्त्री-पुरुष, सबके लिए उपयोगी और लाभकारी है।

घाव और गुहेरी : छुहारे की गुठली को पानी के साथ पत्थर पर घिसकर, इसका लेप घाव पर लगाने से घाव ठीक होता है। आंख की पलक पर गुहेरी हो तो उस पर यह लेप लगाने से ठीक होती है।

शीघ्रपतन : प्रातः खाली पेट दो छुहारे टोपी सहित खूब चबा-चबाकर दो सप्ताह तक खाएं। तीसरे सप्ताह से 3 छुहारे लेने लगें और चौथे सप्ताह से चार छुहारे खाने लगें। चार छुहारे से ज्यादा न लें। इस प्रयोग के साथ ही रात को सोते समय दो सप्ताह तक दो छुहारे, तीसरे सप्ताह में तीन छुहारे और चौथे सप्ताह से बारहवें सप्ताह तक यानी तीन माह पूरे होने तक चार छुहारे एक गिलास दूध में उबाल कर, गुठली हटा कर, खूब चबा-चबा कर खाएं और ऊपर से दूध पी लें। य प्रयोग स्त्री-पुरुषों को अपूर्व शक्ति देने वाला, शरीर को पुष्ट और सुडौल बनाने वाला तथा पुरुषों में शीघ्रपतन रोग को नष्ट करने वाला है। परीक्षित है।

दमा : दमा के रोगी को प्रतिदिन सुबह-शाब 2-2 छुहारे खूब चबाकर खाना चाहिए। इससे फेफड़ों को शक्ति मिलती है और कफ व सर्दी का प्रकोप कम होता है।

घी : दूध से निकाला हुआ अमृत

दूध से बनाए जाने वाले पदार्थों में घी सर्वश्रेष्ठ है। दूध द्वारा जितने भी पदार्थ बनाए जाते हैं, उनमें घी सर्वाधिक शक्ति प्रदान करने वाला तथा शाकाहारी वर्ग के लिए अमृत के समान है।

घी गाय, भैंस और बकरी के दूध से ही आमतौर पर बनाया जाता है। सब प्रकार के घी में गोघृत सर्वश्रेष्ठ होता है। घी में कैलोरीज सर्वाधिक मात्रा में अर्थात्‌ प्रति 100 ग्राम में लगभग 900 कैलोरीज पाई जाती है।

घी रसायन, मधुर, नेत्रज्योति बढ़ाने वाला, अग्नि प्रदीपक शीतवीर्य तथा विष, दरिद्रता, कुरूपता, पित्त और वात का नाश करने वाला है। थोड़े भारीपन वाला तथा कांति, बल, तेज, लावण्य बुद्धि, स्वर की मधुरता, स्मरण शक्ति, मेधा और आयु को बढ़ाने वाला तथा बलवर्द्धक है। यह भारी, चिकना, कफकारी तथा उदावर्त, ज्वर, उन्माद, शूल, अफरा, वर्णक्षय, विसर्प तथा रक्तविकारों का नाश करने वाला है। ज्वर के रोगी के लिए हितकारी है।

उपयोग : (1) नया घी आहार के लिए और पुराना घी औषधि के रूप में उपयोगी होता है। एक वर्ष के बाद घी पुराना हो जाता है। घी का उपयोग रसोई के व्यंजन बनाने, तलने, बघारने तथा रोटी पर लगाने में तो प्रयोग किया ही जाता है, साथ ही इसका उपयोग औषधि के नुस्खों में भी किया जाता है। तेल की अपेक्षा घी का उपयोग करना अच्छा होता है, क्योंकि तेल खाने में एसीडिटी पैदा करता है, वहां घी पित्त का शमन कर एसीडिटी को समाप्त करता है।

(2) जुलाब लेना हो तो पहले तीन दिन तक 1 चम्मच ताजा घी में थोड़ी पिसी काली मिर्च मिलाकर सोते समय चाट लें। इससे आंतें मुलायम हो जाएंगी और मल फूल जाएगा तथा आसानी से निकल जाएगा। तीन दिन बाद कोई सा भी हलका जुलाब ले लें।

(3) हिचकी चलती हो तो 1-2 चम्मच ताजा घी, जरा सा गरम कर, चाट लेना चाहिए। हिचकी चलना बंद हो जाएगी।
(3) गला बैठ गया हो तो 2 चम्मच ताजे घी में पिसी काली मिर्च डालकर गरम करें और ठंडा कर लें। भोजन के बाद इसका सेवन करें। इससे गले की आवाज ठीक हो जाती है। होठ फटते हों तो घी में जरा सा पिसा नमक मिलाकर होठों व नाभि पर लगाना चाहिए।

(4) रात को सोने से पहले सिर के बालों में और चेहरे पर घी लगाकर मालिश करने से कुछ दिनों में चेहरे के दाग धब्बे, झांई आदि मिट जाते हैं, चेहरे की त्वचा कांतिपूर्ण हो जाती है, बाल घने, लंबे व चमकीले हो जाते हैं और दिमाग में तरावट रहती है।

(5) ताजे घी में जायफल घिसकर इसका पतला लेप आंखों की पलकों पर लगाने से अनिद्रा रोग नष्ट होता है और नींद आ जाती है। नकसीर फूटने से खून गिरता हो तो नाक में दोनों तरफ घी की बूंदें टपकाने, घी सुंघाने और गर्दन नीची करके लिटाने से खून बहना बंद हो जाता है।

(6) फोड़े फुंसी या चोट का घाव ठीक करने और भरने के लिए घी का फाहा बनाकर लगाना बहुत लाभदायक होता है।

(7) जो दुबले-पतले शरीर के और कमजोर आंखों वाले हों, उन्हें प्रतिदिन गाय का घी 2 चम्मच और 2 चम्मच पिसी मिश्री मिलाकर भोजन के साथ या दिन में कभी भी एक बार खाना चाहिए। दो माह में इसका प्रभाव दिखने लगेगा।

घी का सेवन करते हुए अपनी पाचन शक्ति का ध्यान रखना जरूरी है, क्योंकि घी पचने में भारी होता है और शारीरिक परिश्रम करने वाला स्वस्थ व्यक्ति ही इसे पूरी तरह हजम कर सकता है। मोटे व्यक्ति यदि घी ठीक से पचा न सकें तो पहले पाचन शक्ति ठीक करे। फिर घी का सेवन शुरू करें।

घी पच नहीं रहा है, इसका संकेत कब्ज होने, पतले दस्त लगने, भूख कम होने और पेट भारी होने से मिलता है। दाल में घी का तड़का लगाकर घी का सेवन करना और रात को सोने से पहले दूध में घी डालकर पीना, ये तरीके ऐसे हैं, जिनसे घी आसानी से हजम हो जाता है।

अच्छी पाचन शक्ति हो तो किसी भी उम्र का व्यक्ति घी का सेवन कर सकता है। छोटे शिशु, बहुत वृद्ध, जो कमजोर हों, राजयक्ष्मा, कफ रोग, आम व्याधि, हैजा, मलबन्ध, मदात्यय, ज्वर और मंदाग्नि से ग्रस्त व्यक्ति को घी का अति सेवन नहीं करना चाहिए।

तरबूज : एक स्वास्थ्य रक्षक फल

तरबूज सारे भारत में पाया जाता है और एक सुपरिचित फल है जो अन्दर से लाल और बाहर से हरा या कालिमायुक्त गहरा हरा होता है। इसके बीज काले और सफेद दोनों प्रकार के होते हैं।

यह कच्चा होने पर अन्दर से सफेद और पकने पर हलका लाल या गहरा लाल हो जाता है, कुछ सफेद भी रहते हैं। इसका गूदा मुंह में रखकर चबाते ही पानी पानी हो जाता है।

तरबूज ग्राही, शीतल, भारी तथा दृष्टि की शक्ति, पित्त और वीर्य नाशक होता है। पका हुआ तरबूज पित्तकारक, क्षारयुक्त मूत्रल, गर्म और वात कफ शामक होता है। इसके बीजों का गूदा (मगज) मधुर, बलवीयवर्द्धक, रुचिकारक, शीतल और मूत्रल होता है।

इन बीजों का तेल, बादाम के तेल की जगह उपयोग में लिया जाता है। तरबूज में काफी मात्रा में पेक्टिन और रस में सिट्रयुलिन 0.17 प्रतिशत होता है। इसके बीजों में आवश्यक अमीनो अम्ल काफी मात्रा में पाए जाते हैं।

उपयोग : आमतौर पर तरबूज का उपयोग एक फल के तौर पर काटकर खाने के रूप में किया जाता है और इसके छिलकों की शाक बनाकर खाई जाती है। इसके अलावा तरबूज के कुछ प्रयोग घरेलू इलाज के रूप में भी हैं-

मूत्र दाह : तरबूज के बीच में से गोलाई में टुकड़ा काटकर निकालें और इस जगह से तरबूज में शकर डाल दें, फिर वह टुकड़ा तरबूज में लगाकर रातभर ओस में रखें। सुबह इसे काटकर खाएं। इस प्रयोग से पेशाब की जलन और रुकावट दूर होती है।

दिमागी ताकत : तरबूज के बीजों की गिरि निकालकर 5-10 गिरियां सुबह खूब चबा-चबाकर खाने से दिमागी ताकत बढ़ती है।

सिर दर्द : तरबूज के गूदे के टुकड़े करके मोटे कपड़े में रखकर निचोड़ें और इसके रस में शकर घोलकर पिएं। इस प्रयोग को थोड़े दिन तक करते रहने से पुराना सिर दर्द होना बन्द हो जाता है।
कब्ज : भोजन के बाद नियमित रूप से तरबूज खाने से कब्ज नहीं रहता और रहता हो तो दूर हो जाता है।

ज्वर : ज्वर के रोगी को तरबूज खिलाने या इसका रस पिलाने से उसे राहत मिलती है और ज्वर दूर होता है।

सूखी खांसी : सूखी खांसी होने पर खांसी तो चलती है पर कफ नहीं निकलता। तरबूज काटकर इस पर काला नमक बुरक कर खाने से खांसी चलना बन्द हो जाती है।

उच्च रक्त चाप : तरबूज के बीजों का रस पीने से उच्च रक्त चाप सामान्य हो जाता है। बीजों का रस बनाने के लिए तरबूज के बीज छाया में सुखा लें। दो चम्मच बीज कूट-पीसकर एक कप उबलते गर्म पानी में डालकर घण्टेभर तक रखें। घण्टेभर बाद चम्मच से हिलाकर छानकर पी जाएं। इस प्रयोग से उच्च रक्त चाप, वृक्क (किडनी) में सूजन हो तो वह भी ठीक होती है।

मानसिक दुर्बलता : मानसिक दौर्बल्य, उन्माद, अनिद्रा आदि विकारों को दूर करने के लिए तरबूज का रस एक कप गाय का दूध एक कप और दो चम्मच पिसी मिश्री सफेद कांच की बोतल में भरकर रात को खुली चांदनी में रखें और सुबह खाली पेट इसे पी जाएं। यह उपाय कुछ दिन करने से ये सभी व्याधियां दूर हो जाती हैं।

मजबूत बनाए कैल्शियम

बढ़ते बच्चों व महिलाओं के लिए कैल्शियम कितना आवश्यक है तथा दूध इसका प्रमुख स्रोत है, तभी तो भारतीय माताएँ कहती हैं 'बेटा दूध पी लो, ये तुम्हारी हड्डियाँ मजबूत करेगा।' हड्डियों व दाँत में 99 प्रतिशत कैल्शियम होता है तथा शेष मात्रा शरीर की प्रत्येक कोशिका के समुचित कार्य संचालन के लिए आवश्यक है। इसे दूध के अतिरिक्त, मूँगफली की खली, गुड़, सोयाबीन, हरी सब्जियों, भुने हुए चनों व उड़द से प्राप्त कर सकते हैं।

- मूँगफली की खली के 100 ग्राम में लगभग 213 मि.ग्रा. कैल्शियम होता है, जिसे नमक, मिर्च, लहसुन के साथ पीसकर तीखा बनाकर बतौर चटनी खाया जा सकता है।

- गुड़ में शकर की तुलना में छः गुना कैल्शियम होता है, जिसे आप चॉकलेट की तरह भी खा सकते हैं।

- सोयाबीन को गलाकर, उबालकर या गेहूँ के आटे में सोयाबीन का आटा मिलाकर रोटी बनाकर खा सकते हैं।

- सहजन की पत्ती के 100 ग्राम में लगभग 440 मि.ग्रा. कैल्शियम होता है, जिसे सब्जी बनाकर खाया जा सकता है।

- चने के साग के 100 ग्राम में लगभग 340 मि.ग्रा. कैल्शियम होता है, जिसे कच्चा या सब्जी बनाकर खाया जा सकता है।

- मैथी के साग के 100 ग्राम में 395 मि.ग्रा. तथा गाजर की पत्ती के 100 ग्राम में 340 मि.ग्रा. कैल्शियम होता है।

- उड़द की छिलके युक्त दाल के 100 ग्राम में 154 मि.ग्रा. तथा भुने हुए चनों के 100 ग्राम में 58 मि.ग्रा. कैल्शियम होता है।

दाँतों व हड्डियों को मजबूत बनाने, कोशिकीय प्रतिक्रियाओं के सही संचालन के लिए भोज्य पदार्थों में कैल्शियम को शामिल करें, और अपने परिवार के सदस्यों को मजबूत बनाएँ, क्योंकि कहा गया है कि 'जिसके साफ दाँत, उसकी साफ आँत, जिसकी हड्डियाँ मजबूत वो खुद मजबूत।

संतुलित आहार में क्या-क्या?

* आपको जितनी भूख है उसका तीन चौथाई हिस्सा ही खाएँ। एक चौथाई भाग पानी के लिए छोड़ दें। खाने के थोड़ी देर बाद ही पानी पीएँ। इससे खाना अच्छे से पचेगा।

* भोजन को पचाने में रेशेदार तत्वों का भी विशेष महत्व है। अपने आहार में रेशेदार व रसीले फलों को भी लें। इनसे विटामिन्स भी मिलेंगे और भोजन पचने में मदद भी मिलेगी।

* पौष्टिक तत्वों के लिए अपने भोजन में अंकुरित अनाजों को भी शामिल करें।

* यदि आप चाहते हैं कि आपके शरीर का आकार सुडौल रहे तो अपने भोजन में अधिक मसाले, तेल व शकर का प्रयोग न करें।

* प्रतिदिन भोजन में कच्ची सब्जियाँ व फलों को शामिल करें। यह मोटापे को कम करने में मददगार होगा।

* यदि आपको अक्सर ही पार्टियों में जाना पड़ता है तो दूसरे दिन उसको संतुलित करने के लिए सूप, फल का रस, फल, सलाद इनका एक समय का आहार रखें। पाचन शक्ति इससे सही रहेगी।

* जब भूख लगी हो तब न खाकर बाद में अधिक खाना शरीर की स्वाभाविक प्रक्रिया में बाधा पहुँचाता है। ऐसी गलती न करें। भूख के अनुसार ही खाएँ।

* विटामिन्स, प्रोटीन्स, खनिज जो शरीर के लिए जरूरी हैं ऐसे सभी पदार्थों को प्रतिदिन अपने आहार में जरूर रखें।

* जहाँ तक हो सके शीघ्र सुपाच्य पदार्थों का ही सेवन करें। इनसे आप कब्ज या गैस जैसे रोगों से बचे रहेंगे।

* खाना खाने का भी तरीका अपनाएँ। प्रसन्न मन से एक जगह बैठकर भोजन करें। इस समय तनाव और चिंता छोड़ दें। अच्छे सलीके से किए गए भोजन से तन और मन दोनों ही प्रभावित होते हैं।

* अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रतिदिन 8 से 10 गिलास तक पानी पीएँ।

गुणकारी आलू के गुण

आलू दुनिया में सबसे ज्यादा लोकप्रिय और सबसे ज्यादा प्रयोग की जाने वाली सब्जी है। आलू पूरी दुनिया में उगाया जाता है, लेकिन इसका मूल स्थान दक्षिण अमेरिका है। भारत में यह 16वीं शताब्दी के आसपास पुर्तगालियों द्वारा लाया गया।

आलू पौष्टिक तत्वों से भरपूर होता है। इसका मुख्य पौष्टिक तत्व स्टार्च होता है। इसमें कुछ मात्रा उच्च जैविक मान वाले प्रोटीन की भी होती है। आलू क्षारीय होता है, इसलिए यह शरीर में क्षारों की मात्रा बढ़ाने या उसे बरकरार रखने में बहुत सहायक होता है। यह शरीर में ऐसीडोसिस भी नहीं होने देता। आलू में सोडा, पोटाश और विटामिन 'ए' तथा 'डी' भी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। आलू का सबसे अधिक महत्वपूर्ण पौष्टिक तत्व विटामिन सी है। योरप में जब से आलू का प्रयोग व्यापक होता गया है, तब से स्कर्वी नामक रोग की घटनाएँ बहुत कम देखने में आती हैं।

आलू के पौष्टिक तत्वों का लाभ लेने के लिए इसे हमेशा छिलके समेत पकाना चाहिए क्योंकि आलू का सबसे अधिक पौष्टिक भाग छिलके के एकदम नीचे होता है, जो प्रोटीन और खनिज से भरपूर होता है। आलू को उबाला, भूना या अन्य सब्जियों के साथ पकाया जाता है, इसलिए इसके पौष्टिक तत्व आसानी से हजम हो जाते हैं। शरीर उन्हें दो से तीन घंटों में आसानी से सोख लेता है। आलू का रस निकालने के लिए जूसर का प्रयोग किया जा सकता है, या फिर उसे कुचलकर या कूट-पीसकर उसका रस कपड़े में से छाना जा सकता है।

आलू का यदि कोई भाग हरा रह गया है तो उसे काटकर निकाल देना चाहिए, क्योंकि उसमें सोलेनाइन नामक विषैला पदार्थ होता है। इसके अतिरिक्त यदि आलू में अंकुर आ गए हों, तो अंकुरित भाग काटकर निकाल देना चाहिए और उसे प्रयोग में नहीं लाना चाहिए। आलू में औषधीय गुण जबर्दस्त हैं। यह आँतों में सड़न की प्रक्रिया को रोकता है, और पाचन प्रक्रिया में सहायक बैक्टीरिया के विकास में सहायता करता है। आलू यूरिक अम्ल को घोलकर निकालता है। पुरानी कब्ज, आँतों में विषाक्तता, यूरिक अम्ल से संबंधित रोग,गुर्दों में पथरी, ड्रॉप्सी आदि रोगों के इलाज में आलू पर आधारित चिकित्सा को बहुउपयोगी माना गया है। स्कर्वी रोग में आलू को आदर्श आहार औषधि माना गया है।

प्रत्येक बार भोजन करने से पहले चाय का एक या दो चम्मच भर कच्चे आलुओं का रस पीने से सभी तरह के तेजाब शरीर से निकल जाते हैं और गठिया रोग में आराम मिलता है। आलू के छिलके में महत्वपूर्ण खनिज लवण भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। जिस पानी में आलुओं को छिलके समेत उबाला जाता है वह पानी शरीर में तेजाब की अधिकता के कारण होने वाले रोगों की आदर्श दवा बन जाता है। इसका काढ़ा तैयार कर, छानकर एक-एक गिलास दिन में 3-4 बार प्रतिदिन लेना चाहिए।

पाचन संबंधी बीमारियों में कच्चे आलू का रस बहुत उपयोगी होता है, क्योंकि यह आँतों में सूजन से आराम दिलाता है। इस रोग में आराम पाने के लिए कच्चे आलू का आधा प्याला रस भोजन से आधा घंटा पहले दिन में दो या तीन बार लेना चाहिए।

यह आँतों की सूजन और ड्योडेनल अल्सर से भी आराम दिलाता है। पेट और आँतों के रोगों तथा विषाक्तता के मामलों में आलू के स्टार्च का इस्तेमाल एंटीइंफ्लेमेट्री (सूजन दूर करने वाले) पदार्थ के रूप में किया जाता है। कच्चे आलू का रस त्वचा पर दाग-धब्बे दूर करनेमें उपयोगी सिद्ध हुआ है। आलू में मौजूद पोटेशियम सल्फर, फास्फोरस और कैल्शियम की मात्रा त्वचा की सफाई में मदद करती है।

यह बात विशेष रूप से याद रखनी चाहिए कि आलू के गुण तभी तक अधिक प्रभावकारी रहते हैं, जब तक यह कच्चा रहता है, क्योंकि उसमें जीवित कार्बनिक परमाणु होते हैं। पकाई हुई अवस्था में ये जैविक परमाणु अकार्बनिक परमाणु में बदल जाते हैं और उनका रचनात्मक लाभ कम हो जाता है। यह आश्चर्य की बात है कि आलू की रसदार लुग्दी या पेस्ट झुर्रियाँ, बढ़ती उम्र के दाग-धब्बे और त्वचा की रंगत निखारने में सहायता करती है।

सेहत से भरपूर सेब

* प्रतिदिन एक सेब खाएँ। यह हमें अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करेगा।

* सेब का सेवन हृदय रोगियों के लिए भी लाभदायक है।

* एनीमिया के रोगी को सेब के रस का सेवन कराएँ, लाभ होगा।

* भोजन के साथ सेब का सेवन करने से शराब पीने की आदत धीरे-धीरे छूट जाती है।

* कच्चे सेब के सेवन से अतिसार व कब्ज में आराम मिलता है।

* उच्च रक्तचाप में सेब खाने से बहुत राहत मिलती है।

* पथरी रोग में भी सेब का सेवन लाभप्रद सिद्ध होता है

गले के लिए वरदान है मुनक्का

दिखने में छोटी मुनक्का बहुत ही गुणकारी है। इसमें वसा की मात्रा नहीं के बराबर होती है। यह हल्की, सुपाच्य, नरम और स्वाद में मधुर होती है। इसे बड़ी दाख (रेजिन) के नाम से भी जाना जाता है। साधारण दाख और मुनक्का में इतना फर्क है कि यह बीज वाली होती है और छोटी दाख से अधिक गुणकारी होती है। आयुर्वेद में मुनक्का को गले संबंधी रोगों की सर्वश्रेष्ठ औषधि माना गया है। मुनक्का के औषधीय उपयोग इस प्रकार हैं-

सर्दी-जुकाम होने पर सात मुनक्का रात्रि में सोने से पूर्व बीज निकालकर दूध में उबालकर लें। एक खुराक से ही राहत मिलेगी। यदि सर्दी-जुकाम पुराना हो गया हो तो सप्ताह भर तक लें।

मियादी और पुराने ज्वर में दस मुनक्का एक अंजीर के साथ सुबह पानी में भिगोकर रख दें। रात्रि में सोने से पूर्व मुनक्का और अंजीर को दूध के साथ उबालकर लें। ऐसा तीन दिन करें। कितना भी पुराना बुखार हो, ठीक हो जाएगा।

जिन व्यक्तियों के गले में निरंतर खराश रहती है या नजला एलर्जी के कारण गले में तकलीफ बनी रहती है, उन्हें सुबह-शाम दोनों वक्त चार-पाँच मुनक्का बीजों को खूब चबाकर खा ला लें, लेकिन ऊपर से पानी ना पिएँ। दस दिनों तक निरंतर ऐसा करें।

गलकंठ और दमा रोगियों के लिए भी इसका सेवन फायदेकारक है, क्योंकि मुनक्का श्वास-नलियों के अंदर जमा कफ को तुरंत बाहर निकालने की अद्भुत क्षमता रखती है।

कब्ज के रोगियों को रात्रि में मुनक्का और सौंफ खाकर सोना चाहिए। कब्ज दूर करने की यह रामबाण औषधि है।

जो बच्चे रात्रि में बिस्तर गीला करते हों, उन्हें दो मुनक्का बीज निकालकर रात को एक सप्ताह तक खिलाएँ। इस बीच बच्चे को ठंडी चीजों एवं दही, छाछ का सेवन न करने दें।

एक मुनक्का का बीज निकालकर उसमें लहसुन की फाँक रखकर खाने से उच्च रक्तचाप में आराम मिलता है।

पच्चीस ग्राम मुनक्का देशी घी में सेंककर और सेंधा नमक डालकर खाने से चक्कर आना बंद हो जाते हैं।

पौष्टिक मूँगफली

महात्मा गाँधी की मान्यता थी कि मूँगफली का तेल असली घी से भी अधिक पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्द्धक होता है। उनकी इस धारणा में कितना तथ्य था इसे बताना तो कठिन है, क्योंकि गाँधीजी चिकित्साशास्त्री या स्वास्थ्य विशेषज्ञ नहीं थे। लेकिन इसमें संदेह नहीं कि मूँगफली ऐसा अकेला खाद्य पदार्थ है जो सारी दुनिया में समान रूप से लोकप्रिय है और बच्चों से लेकर बूढ़ों तक का हर तबका उसको बड़े शौक के साथ खाता है।

यद्यपि मूँगफली दक्षिण अमेरिका का उत्पादन माना जाता है, लेकिन इसकी सबसे ज्यादा उपज भारत में ही होती है। प्रचुर मात्रा में इसका निर्यात अमेरिका में किया जाता है, जहाँ उसकी खपत पूरे विश्व में सर्वाधिक है। वहाँ के लोग मूँगफली से बने मक्खन और पनीर को बड़े शौक से खाते हैं।

इस बात को शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि मूँगफली वस्तुतः पोषक तत्वों की अप्रतिम खान है। प्रकृति ने भरपूर मात्रा में उसे विभिन्न पोषक तत्वों से सजाया-सँवारा है। 100 ग्राम कच्ची मूँगफली में 1 लीटर दूध के बराबर प्रोटीन होता है। मूँगफली में प्रोटीन की मात्रा 25 प्रतिशत से भी अधिक होती है, जब कि मांस, मछली और अंडों में उसका प्रतिशत 10 से अधिक नहीं। 250 ग्राम मूँगफली के मक्खन से 300 ग्राम पनीर, 2 लीटर दूध या 15 अंडों के बराबर ऊर्जा की प्राप्ति आसानी से की जा सकती है। मूँगफली पाचन शक्ति बढ़ाने में भी कारगर है। 250 ग्राम भूनी मूँगफली में जितनी मात्रा में खनिज और विटामिन पाए जाते हैं, वो 250 ग्राम मांस से भी प्राप्त नहीं हो सकता है।

तिल और गुड़ के व्यंजनों के साथ मूँगफली का सेवन स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभप्रद माना गया है। उसकी बिना भूनी गिरी यदि सुबह खाली पेट खाई जाए, तो आप ज्यादा तंदरुस्त होंगे।

छोटी-सी लौंग के बड़े कमाल

लौंग मध्यम आकार का सदाबहार वृक्ष से पाया जाने वाला, सूखा, अनखुला एक ऐसा पुष्प अंकुर होता है जिसके वृक्ष का तना सीधा और पेड़ भी 10-12 मीटर की ऊँचाई तक वाला होता है। इसका उपयोग भारत और चीन में 2000 वर्षों से भी अधिक समय से हो रहा है। लौंग एक ऐसा मसाला है जो दंत क्षय को रोकता है और मुँह की दुर्गंध को दूर भगाता है। इसके अलावा ईरान और चीन में तो ऐसा भी माना जाता था कि लौंग में कामोत्तेजक गुण होते हैं।

ऐतिहासिक रूप से लौंग का पेड़ मोलुक्का द्वीपों का देशी वृक्ष है, जहाँ चीन ने ईसा से लगभग तीन शताब्दी पूर्व इसे खोजा और अलेक्सैन्ड्रिया में इसका आयात तक होने लगा। आज जाजीबार लौंग का सबसे अधिक उत्पादन करने वाला देश है। लौंग में मौजूद तत्वों का विश्लेषण किया जाए तो इसमें कार्बोहाइड्रेट, नमी, प्रोटीन, वाष्पशील तेल, गैर-वाष्पशील ईथर निचोड़ (वसा) और रेशों से बना होता है। इसके अलावा खनिज पदार्थ, हाइड्रोक्लोरिक एसिड में न घुलने वाली राख, कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, सोडियम, पोटेशियम, थायामाइन, राइबोफ्लेविन, नियासिन, विटामिन 'सी' और 'ए' भी लौंग में पाए जाते हैं। इसका ऊष्मीय मान 43 डिग्री है और इससे कई तरह के औषधीय व भौतिक तत्व लिए जा सकते हैं।

लौंग में अनेक औषधीय गुण होते हैं। ये उत्तेजना देते हैं और ऐंठनयुक्त अव्यवस्थाओं, तथा पेट फूलने की स्थिति को कम करते हैं। धीमे परिसंचरण को तेज करती है और हाजमा तथा चयापचय को बढ़ावा देती है। भारतीय औषधीय प्रणाली में लौंग का उपयोग कई स्थितियों में किया जाता है। लौंग को या तो चूर्ण के रूप में लिया जाता है या फिर उसका काढ़ा बनाया जाता है। लौंग के तेल में भी ऐसे अंश होते हैं जो रक्त परिसंचरण को स्थिर करते हैं और शरीर के तापमान को नियंत्रित रखते हैं। लौंग के तेल को बाहरी त्वचा पर लगाने से त्वचा पर उत्तेजक प्रभाव दिखाई देते हैं। त्वचा लाल हो जाती है और उष्मा उत्पन्न होती है। इसके अलावा लौंग एंजाइम के बहाव को बढ़ावा देती है और पाचन क्रिया को भी तेज करती है। यदि भुने हुए लौंग के चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर ले लिया जाए तो उल्टियों पर काबू पाया जा सकता है क्योंकि लौंग के संज्ञाहारी प्रभाव से पेट और हलक सुन्न हो जाते हैं और उल्टियाँ रुक जाती हैं। हैजे के उपचार में भी लौंग बहुत उपयोगी सिद्ध होती है। इसके लिए चार ग्राम लौंग को तीन लीटर पानी में तब तक उबाला जाता है जब तक कि आधा पानी भाप बनकर गायब न हो जाए। इस पानी को पीने से रोग के तीव्र लक्षण तुरंत काबू में आ जाते हैं।

नमक के साथ लौंग चबाने से कफोत्सारण (थूकने) में आसानी होती है, गले का दर्द कम हो जाता है और ग्रसनी की जलन भी बंद हो जाती है। ग्रसनी शोथ के कारण होने वाली खाँसी को दूर करने के लिए जले हुए लौंग को चबाना अच्छा होता है। क्षय रोग, दमा और श्रवसनी शोथ से होने वाली दर्दभरी खाँसियों को कम करने के लिए लहसुन की एक कली को शहद के साथ मिलाएँ और उसमें तीन से पाँच लौंग के तेल की बूँदें डालें। सोने से पहले इसे एक बार लेने से काफी आराम मिलेगा।

लौंग से दमे का बहुत प्रभावी इलाज होता है। छः लौंग की कलियों को 30 मि.ली. पानी के साथ उबालकर काढ़ा बनाकर इसे शहद के साथ दिन में तीन बार लेना चाहिए, इससे कफोत्सारण में आसानी होती है। दाँत के दर्द में भी लौंग उपयोग होती है और इसके एन्टिसेप्टिक गुण दाँतों के संक्रमण को कम करता है। पेशियों की ऐंठन में लौंग के तेल की पुलटिस प्रभावित क्षेत्र पर लगाने से यह ठीक हो जाती है। नमक के क्रिस्टल और लौंग को दूध में मिलाकर तैयार विलेप लगाने से सिरदर्द ठीक हो जाता है। बरौनी के आसपास की जलन को ठीक करने के लिए भी लौंग प्रभावी होती है। पानी में लौंग को घिसकर प्रभावित जगह पर लगाने से सुकून मिलता है।

स्वाद और सेहत से भरपूर गाजर

गाजर का उपयोग हलवा, सलाद, अचार आदि बनाने में किया जाता है।

आयुर्वेद के अनुसार गाजर स्वाद में मधुर, गुणों में तीक्ष्ण, कफ और रक्तपित्त को नष्ट करने वाली है। इसमें पीले रंग का कैरोटीन नामक तत्व विटामिन ए बनाता है। गाजर नेत्र ज्योति बढ़ाने वाली एक सर्वोत्तम जड़ है। इसके औषधीय गुण इस प्रकार हैं : -

*आग से त्वचा जल गई हो तो कच्ची गाजर को पीसकर लगाने से तुरंत लाभ होता है और जले हुए स्थान पर ठंडक पड़ जाती है।

*दिमाग को मजबूत बनाने के लिए गाजर का मुरब्बा प्रतिदिन सुबह लें।

*निम्न रक्तचाप के रोगियों को गाजर के रस में शहद मिलाकर लेना चाहिए। रक्तचाप सामान्य होने लगेगा।

*गाजर का रस, टमाटर का रस, संतरे का रस और चुकंदर का रस लगभग पच्चीस ग्राम की मात्रा में रोजाना दो माह तक लेने से चेहरे के मुँहासे, दाग, झाइयाँ आदि मिट जाते हैं।

*पथरी की शिकायत में गाजर, चकुंदर और ककड़ी का रस समान मात्रा में लें।

*गाजर पीसकर आग पर सेंककर इसकी पुल्टिस बनाकर बाँधने से फोड़े ठीक हो जाते हैं।

*गाजर का अचार तिल्ली रोग को नष्ट करता है।

*अनिद्रा रोग में प्रतिदिन सुबह-शाम एक कप गाजर का रस लें।

*गाजर का सेवन उदर रोग, पित्त, कफ एवं कब्ज का नाश करता है। यह आँतों में जमा मल को तीव्रता से साफ करती है।

*गाजर को उबालकर रस निकाल लें। इसे ठंडा करके 1 कप रस में 1 चम्मच शहद मिलाकर पीने से सीने में उठने वाला दर्द मिट जाता है।

*बच्चों को कच्ची गाजर खिलाने से पेट के कीड़े निकल जाते हैं।

*गाजर का नित्य सेवन रक्त की कमी को दूर कर रक्त में लौह तत्वों की मात्रा को बढ़ाता है।

आँवला है सर्वगुणकारी

आँवले का प्रयोग भोजन में करने से जहाँ हमारा स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है, वहीं यह हमें अनेक बीमारियों से बचाता भी है, क्योंकि आँवले में विटामिन 'सी' की मात्रा अधिक होती है। कुछ व्यक्ति तो आँवला कच्चा ही खा लेते हैं। आँवले की तासीर ठंडी होती है। इसलिए सर्दियों में सुबह धूप के सेवन के साथ इसका मुरब्बा खाने से विटामिन 'सी' और विटामिन 'डी' दोनों ही शरीर को प्राप्त हो जाते हैं।

विटामिन 'सी' से भरपूर यह फल सुखाने, गर्म करने, पकाने या चूर्ण रूप में सुरक्षित रखने पर भी अपने विटामिनों का मूल स्वरूप जीवंत रखता है। इसे आप अचार, चटनी या मुरब्बा अथवा अन्य किसी रूप में सुरक्षित करके, किसी भी मौसम में उपयोग कर सकते हैं। शीतऋतु में सुरक्षित आँवले से बने पदार्थों का गर्मी में सेवन अमृत के समान होता है। यह नेत्र ज्योति के लिए अच्छा है ही साथ ही हृदय धमनियों के अवरोध को दूर कर रक्त प्रवाह को नियमित रखने, शरीर के अन्य अवयवों की गर्मी को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यही इसकी सर्वकालिक उपयोगिता है।

आँवले को हम वैज्ञानिक कसौटी पर भी विश्लेषित करें तो पाएँगे कि प्रति 100 ग्राम आँवले में 600 मिलीग्राम विटामिन 'सी' रहता है। इसके अलावा प्रोटीन, वसा, रेशा, कैल्शियम, खनिज, लवण, फास्फोरस, लोहा अन्य फलों की तुलना में अधिक रहता है। एक आँवले में 2 संतरे या 5 केलों के बराबर विटामिन 'सी' रहता है। रक्त विकार दूर करने में आँवले जैसे कोई दूसरा फल नहीं। यह रक्त की गर्मी व चित्त के दोषों को तो दूर करता ही है, मस्तिष्क व हृदय की कोशिकाओं को भी दुरुस्त रखता है। भोजन से पहले या भोजन के बाद किसी भी रूप में आँवले का सेवन लाभदायक होता है। यह पायरिया रोग को रोकने में सक्षम है। इसके बारीक सूखे चूर्ण को मंजन के रूप में उपयोग में लाने से दाँत मजबूत एवं चमकदार बनते हैं और मुँह की बदबू दूर होती है।

आँवले को औषधीय रूप में प्रयोग करने के कुछ उपाय इस प्रकार हैं :-

*आँवला चूर्ण एक चम्मच रात को सोते समय पानी के साथ लेने से या शहद के साथ चाटने से कब्ज में फायदा होता है।

*आँवले का नियमित प्रयोग बवासीर और कृमि भी नष्ट करता है। जननेंद्रिय संबंधी तकलीफों में भी आँवला फायदेमंद होता है।

मुँह कैंसर में मददगार सब्जियाँ

मुँह कैंसर से बचने के लिए हरी, पत्तीदार और रेशेदार सब्जियों का सेवन बहुत उपयोगी होता है। अनेक शोधों से यह बात सामने आई है कि मुँह कैंसर में सब्जियों का खाना फायदेमंद होता है।

हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय पोषण संस्थान (एन.आई.एन.) के वैज्ञानिकों के मुताबिक हरी सब्जियों और कंद-मूल में पाए जाने वाले विटामिन ए, सेलेनियम, जस्ते और रिवोफ्लाविन जैसे पोषक तत्वों में कैंसर प्रतिरोधी गुण होते हैं। इन वैज्ञानिकों ने यह भी सुझाव दिया है कि ये तत्व कैंसर की रोकथाम के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों को प्रभावी बनाने में काफी हद तक सहायक साबित हो सकते हैं।

राष्ट्रीय पोषण संस्थान की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक सर्वेक्षण के दौरान चुने गए लोगों को जब तक (एक साल तक) इन पोषक तत्वों से भरपूर आहार खिलाया गया, उनमें मुँह के कैंसर के लक्षण लगभग खत्म हो चुके थे। वहीं दूसरी ओर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आई.सी.एम.आर.) के जरिए देश के तमाम भागों में किए गए सर्वेक्षणों से पता चला है कि धूम्रपान और तम्बाकू सेवन से फेफड़े, मुँह तथा आहार नली का कैंसर होने की ज्यादा आशंका होती है। इन सर्वेक्षणों से यह भी ज्ञात हुआ है कि अगर सिगरेट, बीड़ी और तम्बाकू उत्पादों का सेवन बंद करने पर फेफड़े, जीभ, मुखीय गुहा, ग्रसनी, स्वर यंत्र, पाचन तंत्र और ग्रसिका जैसे मुँह और पाचन तंत्र के विभिन्न भागों के कैंसर में 50 से 80 फीसदी तक कमी लाई जा सकती है।

भारत में कैंसर से पीड़ित सबसे अधिक 15 प्रतिशत पुरुष ग्रसनी और ग्रसिका के कैंसर से और मुँह (मुखीय गुहा) के कैंसर से 12 प्रतिशत लोग पीड़ित हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय कैंसर पंजीकरण कार्यक्रम (एन.सी.आर.पी.) के तहत दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और बंगलोर जैसे बड़े शहरों में कराए गए सर्वेक्षणों और अध्ययनों के मुताबिक इन कैंसरों से 7 प्रतिशत महिलाएँ भी पीड़ित पाई गईं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक मुँह का कैंसर विश्व में छठा सबसे घातक कैंसर है, लेकिन विकासशील देशों में यह पुरुषों का तीसरा तथा महिलाओं का चौथा सबसे घातक कैंसर है।

मुँह कैंसर के बढ़ने का जो दूसरा सबसे बड़ा कारण है- वह है, इस कैंसर से पीड़ित व्यक्तियों का स्वास्थ्य केंद्रों पर इलाज कराने के लिए न जाना। जब रोग असाध्य दशा में पहुँच जाता है, तब पीड़ित व्यक्ति इलाज के लिए स्वास्थ्य केंद्रों पर चक्कर लगाने लगता है। समय से इलाज, रोग को आगे बढ़ने से रोकने में सहायक हो सकता है।

जामुन के खट्टे-मीठे औषधीय गुण

भारत फलों की विविधता की दृष्टि से अनुपम देश है। यहाँ हर मौसम में स्वादिष्ट व गुणों से भरपूर फल उपलब्ध हो जाते हैं। प्रकृति की ओर से जामुन एक अनमोल तोहफा है। स्वादिष्ट होने के साथ-साथ यह अनेक रोगों की अचूक दवा भी है। जर्मन वैज्ञानिकों ने जामुन पर एक शोध किया। अपनी शोध रिपोर्ट में उन्होंने लिखा है, 'जामुन की पत्तियाँ महिला सेक्स हार्मोन 'प्रोजेस्टिरोन' के स्राव में वृद्धि कर उसे संतुलित रखती हैं और विटामिन 'ई' की सात्मयीकरण की क्रिया को उन्नत करती है।'आयुर्वेद के प्रमुख आचार्य चरक द्वारा सुप्रसिद्ध ग्रंथ, 'चरक संहिता' में वर्णित औषधीय योग 'पुष्यानुग-चूर्ण' में भी जामुन की गुठली मिलाए जाने का विधान है। इस संहिता के अनुसार जामुन की छाल, पत्ते, फल, गुठलियाँ, जड़ आदि सभी आयुर्वेदिक औषधियाँ बनाने में काम आते हैं। जामुन में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा कैल्शियम भी बहुतायत में पाया जाता है।

आइए देखें काले जामुन के उजले गुण :

* जामुन की गुठली चिकित्सा की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी मानी गई है। इसकी गुठली के अंदर की गिरी में 'जंबोलीन' नामक ग्लूकोसाइट पाया जाता है। यह स्टार्च को शर्करा में परिवर्तित होने से रोकता है। इसी से मधुमेह के नियंत्रण में सहायता मिलती है।

* जामुन के कच्चे फलों का सिरका बनाकर पीने से पेट के रोग ठीक होते हैं। अगर भूख कम लगती हो और कब्ज की शिकायत रहती हो तो इस सिरके को ताजे पानी के साथ बराबर मात्रा में मिलाकर सुबह और रात्रि, सोते वक्त एक हफ्ते तक नियमित रूप से सेवन करने से कब्ज दूर होती है और भूख बढ़ती है।
* इन दिनों कुछ देशों में जामुन के रस से विशेष औषधियों का निर्माण किया जा रहा है, जिनके माध्यम से सिर के सफेद बाल आना बंद हो जाएँगे।

* गले के रोगों में जामुन की छाल को बारीक पीसकर सत बना लें। इस सत को पानी में घोलकर 'माउथ वॉश' की तरह गरारा करना चाहिए। इससे गला तो साफ होगा ही, साँस की दुर्गंध भी बंद हो जाएगी और मसूढ़ों की बीमारी भी दूर हो जाएगी।

* विषैले जंतुओं के काटने पर जामुन की पत्तियों का रस पिलाना चाहिए। काटे गए स्थान पर इसकी ताजी पत्तियों का पुल्टिस बाँधने से घाव स्वच्छ होकर ठीक होने लगता है क्योंकि, जामुन के चिकने पत्तों में नमी सोखने की अद्भुत क्षमता होती है।

* जामुन यकृत को शक्ति प्रदान करता है और मूत्राशय में आई असामान्यता को सामान्य बनाने में सहायक होता है।

* जामुन का रस, शहद, आँवले या गुलाब के फूल का रस बराबर मात्रा में मिलाकर एक-दो माह तक प्रतिदिन सुबह के वक्त सेवन करने से रक्त की कमी एवं शारीरिक दुर्बलता दूर होती है। यौन तथा स्मरण शक्ति भी बढ़ जाती है।

* जामुन के एक किलोग्राम ताजे फलों का रस निकालकर ढाई किलोग्राम चीनी मिलाकर शरबत जैसी चाशनी बना लें। इसे एक ढक्कनदार साफ बोतल में भरकर रख लें। जब कभी उल्टी-दस्त या हैजा जैसी बीमारी की शिकायत हो, तब दो चम्मच शरबत और एक चम्मच अमृतधारा मिलाकर पिलाने से तुरंत राहत मिल जाती है।

* जामुन और आम का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से मधुमेह के रोगियों को लाभ होता है।

* गठिया के उपचार में भी जामुन बहुत उपयोगी है। इसकी छाल को खूब उबालकर बचे हुए घोल का लेप घुटनों पर लगाने से गठिया में आराम मिलता है।

जामुन स्वाद में खट्टा-मीठा होने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद है। इसमें उत्तम किस्म का शीघ्र अवशोषित होकर रक्त निर्माण में भाग लेने वाला तांबा पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। यह त्वचा का रंग बनाने वाली रंजक द्रव्य मेलानिन कोशिका को सक्रिय करता है, अतः यह रक्तहीनता तथा ल्यूकोडर्मा की उत्तम औषधि है। इतना ध्यान रहे कि अधिक मात्रा में जामुन खाने से शरीर में जकड़न एवं बुखार होने की सम्भावना भी रहती है। इसे कभी खाली पेट नहीं खाना चाहिए और न ही इसके खाने के बाद दूध पीना चाहिए।

अजवाइन में छुपे औषधीय गुण

अजवाइन की खेती सारे भारत में होती है। इस वस्तु से सब लोग भली-भाँति परिचित हैं। घरेलू औषधि से लेकर मसाले और आयुर्वेदिक दवाओं तक में इसका इस्तेमाल होता है।

गुण-दोष तथा आयुर्वेदिक मत

आयुर्वेद के मतानुसार अजवाइन पाचक, रुचिकारक, तीक्ष्ण, गर्म, चटपटी, हल्की, दीपन, कड़वी, पित्तवर्द्धक होती है। पाचक औषधियों में इसका बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। इसके विषय में संस्कृत की एक कहावत है-'एकाजवानी शतमन्ना पचिका' अर्थात अकेली अजवाइन ही सैकड़ों प्रकार के अन्न को पचाने वाली होती है। यह कहावत प्राचीनकाल से प्रचलित है और कई अंशों में सच भी है, क्योंकि इस एक ही वस्तु में चिरायते का कटु पौष्टिक तत्व, हींग का वायुनाशक गुण और कालीमिर्च का अग्निदीपक गुण पाया जाता है। अपने इन्हीं गुणों के कारण अजवाइन कफ, वायु, पेट का दर्द, वायु गोला, आफरा तथा कृमि रोग को नष्ट करने में समक्ष है। हैजे की प्राथमिक स्थिति में भी इसका प्रयोग उपयोगी है।

यूनानी मत
यूनानी मत के अनुसार यह गर्म तथा रुक्ष है और इसलिए गर्म प्रकृति वालों के लिए हानिकारक है। 'मखजनुल अदबिया' नामक यूनानी दवाओं की किताब के लेखक हकीम मीर मुहम्मद हुसैन के मतानुसार अजवाइन शरीर की वेदना को मिटाने वाली, कामोद्दीपक, वायु विकार को नष्ट करने वाली है। इसका शर्बत लकवा और कंपन वायु में लाभ पहुँचाने वाला है। इसके काढ़े से आँख धोने से आँखें साफ होती हैं तथा कानों में डालने से बहरापन मिटता है। छाती के दर्द में भी यह लाभकारी है। यकृत तथा प्लीहा की कठोरता को मिटाकर हिचकी, वमन,मिचलाहट, दुर्गंध, डकार, बदहजमी, मूत्र का रुकना, पथरी इत्यादि बीमारियों में भी यह लाभ पहुँचाती है।

रासायनिक विश्लेषण
इसके अंदर एक प्रकार का सुगंधयुक्त उड़नशील द्रव्य रहता है, जिसको अजवाइन का फूल, अजवाइन का सत तथा अँगरेजी में थायमल कहते हैं।

अजवाइन का सत और तेल
कारखानों में अजवाइन को पानी में भिगोकर भाप द्वारा इसका सत खींचा जाता है। इस अर्क के ऊपर अजवाइन का तेल तैरकर आ जाता है। इसके तेल को अँग्रेजी में ओमम वाटर कहते हैं। अजवाइन के दो भेद होते हैं-अजवाइन खुरासानी और अजवाइन जंगली। इनके भी गुण धर्म अजवाइन से मिलते-जुलते हैं। प्रस्तुत है अजवाइन के लाभ एवं औषधि के रूप में उसके प्रयोग के बारे में कुछ नुस्खे -

* सर्दी-जुकाम : अजवाइन को गर्म करके पतले कपड़े में पोटली बाँधकर सूँघने से जुकाम और सर्दी में लाभ होता है। इसके अलावा अजवाइन को चबाने और उसका धुआँ तथा बफरा लेने से भी सर्दी-जुकाम में लाभ होता है और शरीर का दर्द तथा माथे का भारीपन दूर होता है।

* अफारा या आफरा : छः माशा अजवाइन में डेढ़ माशा काला नमक मिलाकर फंकी लेकर गर्म पानी पीना चाहिए। इस चूर्ण की दोनों समय दो माशा फंकी लेने से वायु गोला का नाश होता है और पेट का फूलना बंद हो जाता है।

* मंदाग्नि : अजवाइन, कालीमिर्च और सेंधा नमक तीनों चीजों को पीसकर गर्म जल के साथ प्रातःकाल फंकी लेने से उदर शूल, पेट का दर्द और मंदाग्नि मिटती है।
* आँतों की वेदना : अजवाइन सेंधा नमक, संचरा नमक, यवक्षार और हर्रे इन सबका समान भाग लेकर चूर्ण करके पाँच से दस रत्ती तक की मात्रा लेने से आँतड़ियों की वेदना और उदरशूल दूर होता है।

* सूखी खाँसी : अजवाइन को पान में रखकर चबाकर खाने से सूखी खाँसी में लाभ पहुँचता है।

* जोड़ों का दर्द : इसके तेल की मालिश करने से जोड़ों के दर्द में लाभ होता है।

* बच्चों की उल्टी : बच्चों की उल्टी और दस्त मिटाने के लिए अजवाइन को पीसकर माँ के दूध के साथ देने से लाभ होता है।

* चर्म रोग : अजवाइन को पानी में गाढ़ा पीसकर दिन में दो बार लेप करने से दाद, खाज, कृमि पड़े हुए घाव तथा अग्नि से जले हुए स्थान में लाभ होता है।

* रजो दोष : अजवाइन के चूर्ण को तीन माशा की मात्रा में दिन में दो बार गर्म दूध में देने से स्त्रियों का रज खुल जाता है।

* कृमि रोग : इसके चूर्ण की चार माशे की मात्रा छाछ के साथ लेने से पेट के कृमि नष्ट हो जाते हैं।

* नेत्र रोग : अजवाइन को जलाकर उसका कपड़छन चूर्ण करके जस्ते की सलाई से सुर्मे की तरह आंजने से आँखों के रोग में लाभ मिलता है तथा दाँतों पर मलने से दाँत साफ होते हैं तथा मसूढ़ों के रोग मिट जाते है।

* वात व्याधि : खुरासानी अजवाइन को पीसकर लेप करने से गठिया, संधिवात, जोड़ों की सूजन में लाभ होता है।

* दाँत का दर्द : खुरासानी अजवाइन को राल के साथ पीसकर दाँतों के खोखले में रखने से लाभ होता है।

* पेट का दर्द : खुरासानी अजवाइन को गुड़ में मिलाकर लेने से पेट की वायु पीड़ा मिटती है।

* पेट के कीड़े : प्रातःकाल थोड़ा गुड़ खाकर बासी पानी के साथ खुरासानी अजवाइन की फंकी लेने से पेट की कीड़े निकल जाते हैं।

प्रसूता स्त्रियों को अजवाइन देने से उन्हें भूख लगती है, अन्न पचता है, कमर का दर्द कम होता है और गर्भाशय की गंदगी साफ हो जाती है। प्रसूतिका ज्वर में भी अजवाइन बहुत लाभदायक है। फुस्फुस संबंधी रोगों में अजवाइन लेने से कफ का पैदा होना कम हो जाता है और घबराहट मिट जाती है। दमे के रोगों में इसको गर्म पानी के साथ देने से अथवा इसको चिलम में रखकर इसका धूम्रपान करने से लाभ होता है। फुस्फुस के जीर्ण रोगों में यह बहुत लाभदायक है।